उलझन एक अजीब है , जब उलझे संसार |
प्रेम में उलझन , बनती बात ,प्रेम उलझकर बना ओ प्यार , इतना सुन्दर ये संसार ||
प्रेम रूपी जब दीप जला तो , खुशियों से खिलता संसार |
खुशिया बहुत निराली है , जब उलझन बनता प्यार ही प्यार ||
जब उलझन होता झगड़ो का , तब दुनिया बनती खड़हर सा |
इश दुनियाँ (परिवार) में दीप न जलता , तो लगता है आया काल |
काल रूपी जब दीप जला तो , खुशियाँ बनती है जौजाल ||
जब खुशियाँ उठती है ऊपर , तो आते है काल का छाँव |
इश छाँव में जल जाते है , ऊपर -ऊपर के ही पाँव ||
तो लगे कबारन(उजागर) उन मुर्दो(बात) को , जो खुशिओं से दबे पड़े थे |
जब कबरन को मुर्दे लागे, तो लागे संसार की दुरी भागे |
छांट - छूँट कर , बाट बूट कर , अलगा हुवा यही संसार |- 2 |
एक ही खून के दो जन्मे थे , लेकिन बात नहीं बनते थे |
एक लगा कुछ बोलन लागे , दूसरा बोलन जोर से लागे ||
इशी बीच में हो गई मार ,
मार मार में हुयी बखेड़ा , बात बढ़ी फैलन को लागे |
तो लगे काबरन उन सब मुर्दो (बात) को , जो न जानत था संसार (समाज) ||
एक कहाँ आव ना आगे , दूसरा कहाँ तू कहें भागे |
यह उलझन ना सुलझ सका , तब ||
अलग हुवा यही संसार(परिवार) , अलग हुवा यही संसार (परिवार ) ||
--------------------------------------------- मुकेश कुमार चकर्वर्ती
Wonderful.
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 28 जुलाई 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर
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